नमस्ते दोस्तों,
मैं अँकुर सक्सेना, आप सभी पाठकों का एक बार फिर से स्वागत करता हूँ, प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता की श्रृंखला के भाग-2 में| आशा करता हूँ कि आप सभी पाठकों को इस श्रृंखला का भाग-1 अच्छा लगा होगा| इस श्रृंखला के भाग-1 में हमने प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता से सम्बन्धित कुछ आधारभूत तथ्यों का अध्ययन किया था| इस श्रृंखला के भाग-2 में हम जिन तथ्यों / विषयों का अध्ययन करेंगे, वह निम्नलिखित हैं:
1. प्राचीन मिस्त्र में प्रशासनिक एवं वाणिज्य व्यवस्था
2. प्राचीन मिस्त्र की सामाजिक स्थिति
3. प्राचीन मिस्त्र में कानून व्यवस्था
4. प्राचीन मिस्त्र में कृषि व्यवस्था
5. प्राचीन मिस्त्र में पशुपालन
तो आइये दोस्तों, बिना किसी देरी के साथ प्रारम्भ करते हैं, प्राचीन मिस्त्र की श्रृंखला का भाग-2...
1. प्राचीन मिस्त्र में प्रशासनिक एवं वाणिज्य व्यवस्था
प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता में “फैरो”, देश अथवा राज्य का निरपेक्ष सम्राट होता था और उसके पास राज्य के प्रशासन, संसाधन, आदि के नियन्त्रण का अधिकार सुरक्षित होता था| फैरो, प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य का सर्वोच्च सैन्य अधिकारी भी होता था और साम्राज्य की सरकार का मुखिया और साम्राज्य की प्रशासनिक इकाई का सर्वोच्च अधिकारी भी होता था, जो अपने प्रशासनिक निर्णयों के लिए मंत्रियों, उच्च प्रशासनिक एवं सैन्य अधिकारियों की एक विशाल नौकरशाही पर निर्भर होता था| राज्य के प्रशासन की जिम्मेदारी, फैरो के बाद, दूसरे स्थान पर उसके परिवार के किसी जिम्मेदार व्यक्ति अथवा फैरो की सेना के प्रमुख अर्थात् वज़ीर / सेनापति की होती थी| यह वह लोग होते थे, जो प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य में प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते थे|
प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता में सेनापति के पास भूमि सर्वेक्षण, राज्य के खजाने, निर्माण परियोजनाओं, कानून व्यवस्था, अभिलेखागारों, आदि की देखरेख की जिम्मेदारी होती थी| क्षेत्रीय स्तर पर, इस महान साम्राज्य को लगभग 42 प्रशासनिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया था, जिसे प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य में “नोम्स” कहा जाता था| जिसमें से प्रत्येक क्षेत्र एक “नोमार्क” नामक अधिकारी के द्वारा प्रशासित किया जाता था, जोकि अपने अधिकार-क्षेत्र के लिये सेनापति के प्रति जवाबदेह होता था|
इस काल में, मन्दिर, स्मारक स्थल, आदि प्राचीन मिस्त्र के विशाल साम्राज्य की अर्थव्यवस्था का आधार होते थे| प्राचीन मिस्त्र के सामाज्य में यह मन्दिर, स्मारक स्थल, आदि केवल एक प्रार्थना स्थल ही नहीं थे, बल्कि प्राचीन मिस्त्रवासी इनका उपयोग अनाज एवं अन्य खाद्यान्न सामग्री का भण्डारण करने के लिए “भण्डार गृह” के रूप में करते थे|
साथ ही, कुछ स्थानों पर ऐसे भी साक्ष्य मिलते हैं, जिनमे प्राचीन मिस्त्रवासी इन मन्दिर, स्मारक स्थल, आदि का उपयोग अपने खजाने को सुरक्षित रखने के लिए “खजाना गृह” के रूप में करते थे| इन्हें प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य में “ओवरसियर” नामक प्रशासनिक अधिकारियों के द्वारा प्रशासित किया जाता था| “ओवरसियर” नामक इन प्रशासनिक अधिकारियों का कार्य, भण्डार गृह में संरक्षित किये गए अनाज, खाद्य पदार्थों एवं अन्य आवश्यक सामग्री को पुनः वितरित करने का हुआ करता था|
प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य की अधिकांश अर्थव्यवस्था, केन्द्रीय रूप से व्यवस्थित थी| जिसे फैरो के अधीन कार्य करने वाले प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों एवं मंत्रियों के द्वारा कड़ाई से नियन्त्रित किया जाता था| यद्यपि, प्राचीन मिस्त्र के निवासियों के द्वारा “उत्तरार्ध काल” की अवधि तक लेन-देन की इकाई के रूप में “सिक्के” का उपयोग प्रारम्भ नहीं किया था| परन्तु, उन्होंने एक विशेष प्रकार की “धन-विनिमय प्रणाली” का उपयोग अवश्य किया था| इस प्रणाली में, अनाज एवं अन्य खाद्य सामग्री के बोरे आदि, लगभग 91 ग्राम वजन का एक चाँदी / तांबे का “बटखरा” होता था, जो एक आम भाजक था|
इस महान प्राचीन सभ्यता में श्रमिकों, मजदूरों,
किसानों, आदि को अनाज के रूप में पारिश्रमिक प्रदान किया जाता था और इस सभ्यता से
ऐसे भी स्त्रोत प्राप्त हुये हैं, जिनसे पता चलता है कि फैरो के द्वारा इन
श्रमिकों को उनकी प्रतिभा के अनुरूप खेत और भूमि के रूप में उचित अनुदान भी प्रदान
किये जाते थे| इस प्राचीन सभ्यता में, एक साधारण मजदूर, प्रति माह लगभग 5 ½ बोरे अनाज, खाद्य सामग्री, आदि कमा
सकता था| जोकि, लगभग 200 किलो के बराबर होता था|
प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य में कीमतों को
एक-समान रूप से सम्पूर्ण राज्य में लागू किया जाता था और व्यापार, व्यवसायों, आदि
को व्यवस्थित और सुविधाजनक बनाने के लिए व्यापार में होने वाले सभी प्रकार के
लेन-देन का लेखा-जोखा, “लेखाकार” नामक अधिकारी के द्वारा सूची के रूप में
दस्तावेजों में दर्ज किया जाता था| इस प्राचीन सभ्यता के निवासियों के द्वारा अपने
बच्चों और अपने परिवारों के पालन-पोषण के लिए अन्न एवं अन्य वस्तुओं का कारोबार
किया जाता था|
निर्धारित “मूल्य सूचि” के अनुसार, “5वीं
शताब्दी ई०पू०” के दौरान, “सिक्के” की मुद्रा का चलन विदेशी व्यापारियों के द्वारा
प्रारम्भ किया गया था| इस काल में, प्रारम्भिक स्तर पर, “सिक्कों” को “वास्तविक
मुद्रा” के स्थान पर “कीमती धातु” के “मानकीकृत टुकड़ों” के रूप में प्रयोग किया
जाता था| परन्तु, आगे की सदियों में विदेशी व्यापारियों ने लेन-देन की इकाई के रूप
में “सिक्कों” पर पूर्ण रूप से निर्भर होना आरम्भ कर दिता था|
2. प्राचीन मिस्त्र की सामाजिक स्थिति
प्राचीन मिस्त्र के महान साम्राज्य का समाज, उच्च रूप से “स्तरीकृत समाज” था और इस काल में “सामाजिक स्थिति” को खुलकर प्रदर्शित किया जाता था| इस प्राचीन महान सभ्यता में, साम्राज्य की आबादी का प्रमुख हिस्सा किसानों, श्रमिकों, मजदूरों, आदि से निर्मित था| लेकिन, “कृषि उपज” पर सीधे तौर पर राज्य, मन्दिर, अथवा कुलीन परिवार का अधिकार होता था, जिन्हें इस काल में भूमि का स्वामी माना जाता था| मजदूरों, किसानों, श्रमिकों, आदि को इस काल में “श्रम कर” देना होता था और एक “कार्वी प्रणाली” के अन्तर्गत, उनके लिए सिंचाई एवं राज्य की प्रमुख निर्माण परियोजनाओं में योगदान देना अनिवार्य था|
प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता के साम्राज्य में कलाकारों, वास्तुकारों, चित्रकारों, शिल्पकारों, आदि की हैसियत किसानों, मजदूरों, श्रमिकों, आदि से काफी अच्छी थी| परन्तु, वे भी फैरो और राज्य के अधीन थे और प्राचीन मिस्त्र के मन्दिरों, स्मारक स्थलों, आदि से सम्बन्धित दुकानों, कार्यशालाओं, आदि में कार्य किया करते थे और इस सभ्यता से प्राप्त हुये अवशेषों एवं स्त्रोतों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि इन्हें प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य के खजाने से सीधे भुगतान किया जाता था| प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य के समाज में प्रशासनिक अधिकारियों, मंत्रियों, मन्दिरों / स्मारक स्थलों के पुरोहितों, लेखकों, आदि के पद को “उच्च वर्ग” का माना जाता है| जिन्हें, “सन” के प्रक्षालित वस्त्र, आभूषण, आदि पहनने के सन्दर्भ में तथाकथित “सफेद किल्ट वर्ग” कहा जाता था, जो उनके “उच्च स्तर” को प्रदर्शित करता था|
इस उच्च वर्ग ने प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य
के समाज में कला और साहित्य के क्षेत्र में अपनी सामाजिक स्थिति को प्रमुखता से
प्रदर्शित किया| प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता से प्राप्त हुये कुछ प्राचीन साहित्यिक
अवशेषों एवं स्त्रोतों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि, इस प्राचीन सभ्यता के
लेखक और साहित्यकार, अपने फैरो एवं उनके परिवार को प्रसन्न रखने के लिए, अपनी
साहित्यिक रचनाओं, ग्रन्थों, यात्रा वृतान्तों, आदि में अपने फैरो की शक्ति, उनकी
महानता, उनका कुषाण प्रशासन, उनके दरबार की विशेषताओं, उनके द्वारा करवाये गए
प्रमुख निर्माण-कार्यों, युद्धों, साम्राज्य-विस्तार, आदि विषयों का बढ़-चढ़कर बखान
किया करते थे|
प्राचीन मिस्त्र के समाज में लेखकों, पुरोहितों,
उच्च प्रशासनिक अधिकारियों, मंत्रियों, आदि को उच्च स्तरीय “कुलीन वर्ग” का स्थान
प्राप्त था| इस प्राचीन सभ्यता के समाज में इनके नीचे का स्थान प्राप्त था, चिकित्सकों,
इंजीनियरों, व्यापारियों, वकीलों, आदि को| जिन्हें, अपने क्षेत्र में उच्च
प्रशासनिक अधिकारियों एवं मन्त्रियों का संरक्षण प्राप्त होता था| इस सभ्यता से
प्राप्त हुये स्त्रोतों से इस बात का पता चलता है कि, मिस्त्र की इस प्राचीन
सभ्यता के समाज में “दास प्रथा” अर्थात् “गुलामी की प्रथा” का प्रचलन था| परन्तु,
इसका प्राचीन मिस्त्र के समाज में कितना प्रसार था? इसकी रूप-रेखा क्या थी? अथवा
इसके नियम-कानून क्या थे? इससे सम्बन्धित कोई ऐतिहासिक प्रमाण स्पष्ट रूप से
उपलब्ध नहीं हैं|
प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता से प्राप्त किये गए
कुछ आर्कियोलोजिकल साक्ष्यों का अध्ययन करने से पता चलता है कि, प्राचीन मिस्त्र
के साम्राज्य में “फैरो” के द्वारा करवाये जाने वाले प्रमुख निर्माण-कार्यों में
दुसरे राज्यों, दूर-दराज़ के स्थानों से मंगवाए गए श्रमिक एवं मजदूर तथा युद्धों के
दौरान बन्दी बनाये गए सैनिकों से श्रम करवाया जाता था| कुछ लोगों का इस विषय को
लेकर ऐसा भी मानना है कि, निर्माण-कार्य पूर्ण हो जाने के बाद इन श्रमिकों एवं
मजदूरों के अंग, जैसे-कि: हाथ, पैर, आदि कटवा दिए जाते थे, जिससे कि वे पुनः ऐसा
उत्कृष्ट निर्माण न कर सकें| परन्तु, इस अवधारणा का कोई ठोस आर्कियोलोजिकल साक्ष्य
प्राप्त नहीं हुआ है, जिससे इस बात की पुष्टि हो सके कि, प्राचीन मिस्त्र के
निर्माण-कार्यों में भाग लेने वाले श्रमिकों के साथ ऐसा किया जाता था|
प्राचीन मिस्त्र के समाज में दासों / गुलामों
को छोड़कर बाकी सभी वर्गों के लोगों सहित, पुरुषों एवं स्त्रियों को साम्राज्य के
कानून के समक्ष अनिवार्य रूप से एक नज़र से देखा जाता था और इसके साथ ही, छोटे
किसानों को भी इस साम्राज्य में अपनी शिकायत के निवारण के लिए राज्य की सेना के
सेनापति और फैरो के दरबार / अदालत में याचिका दायर करने के अधिकार प्राप्त थे| इस प्राचीन
सभ्यता के समाज में, पुरुषों और स्त्रियों दोनों को सम्पत्ति रखने और बेचने, विवाह
करने और तलाक देने, उत्तराधिकार प्राप्त करने और फैरो के दरबार / अदालत में कानूनी
विवादों का मुकदमा लड़ने, आदि के अधिकार प्राप्त थे|
विवाहित जोड़े, संयुक्त रूप से सम्पत्ति रख सकते
थे और खुद को तलाक से सुरक्षित रखने के लिए एक अनुबन्ध पर सहमत हो सकते थे, जिसमें
विवाह टूटने की स्थिति में पुरुष को अपनी पत्नी, बच्चों और परिवार के प्रति
वित्तीय दायित्व निर्वाह करना निर्धारित होता था| प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता में,
अपनी समकक्ष प्राचीन ग्रीस, रोम और दुनिया के अपेक्षाकृत अधिक आधुनिक स्थानों की
तुलना में भी स्त्रियों के पास व्यक्तिगत पसन्द और उपलब्धियों की एक लम्बी
श्रृंखला मौजूद थी|
इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है, प्राचीन
मिस्त्र के महान साम्राज्य पर सफलतापूर्वक शासन करने वाली कुछ प्रमुख “महिला फैरो”,
जैसे- “हतसेप्सुत”, “नेफरतिति”, “क्लियोपेट्रा”, आदि| जोकि, न केवल अपने समय की
महान, सर्वाधिक शक्तिशाली “महिला फैरो” थीं, बल्कि एक कुशल निर्माता भी थीं| जिन्हें,
उनके द्वारा निर्मित कराये गए अद्भुत मन्दिरों, स्मारक स्थलों, आदि के कारण तथा
उनके सफल शासनकाल के कारण और कई अन्य महत्तवपूर्ण कारणों से जाना जाता है|
इन “महिला फैरो” के अतिरिक्त, कुछ अन्य महिलाओं
ने प्राचीन मिस्त्र के प्रमुख देवताओं में से एक “अमुन” की “देव पत्नी” के रूप में
अपनी महिमा और शक्ति का भरपूर प्रयोग भी किया| इन स्वतन्त्रताओं के बावजूद,
प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य की इन महत्तवपूर्ण महिलाओं ने साम्राज्य के प्रशासन
की आधिकारिक भूमिकाओं में भाग नहीं लिया| बल्कि, मन्दिरों एवं स्मारक स्थलों में
ही “गौण भूमिकाओं” में ही अपनी सेवायें प्रदान करीं और पुरुषों के समान शिक्षित
होने की उनकी कोई संभावनायें नहीं थीं| परन्तु, फिर भी प्राचीन मिस्त्र की कुछ
महत्तवपूर्ण महिलाओं ने अपने-आपको शिक्षित किया| कुछ इतिहासकारों,
पुरातत्ववेत्ताओं एवं अध्ययनकर्ताओं का ऐसा भी मानना है कि प्राचीन मिस्त्र के कुछ
“पुरुष फैरो” के द्वारा इन “महिला फैरो” के इतिहास को द्वेष-भाव, शत्रुता एवं
पारिवारिक तथा अन्य कारणों से मिटाने का प्रयास भी किया था|
इनमें से कुछ “पुरुष फैरो” में “महिला फैरो” के
द्वारा निर्मित कराये गए महत्तवपूर्ण स्थलों, जैसे- मन्दिर, स्मारक स्थल,
पुस्तकालयों, आदि में काफी तोड़-फोड़ करवाई गयी, कुछ मूर्तियों और चित्रकलाओं को
खण्डित करवाया गया| साथ ही, प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता से कुछ खोजकर्ताओं एवं
आर्कियोलोजिस्ट्स को ऐसे भी अवशेष मिले हैं, जिनको देखने से ज्ञात होता है कि, इन “पुरुष
फैरो” के द्वारा “महिला फैरो” के मन्दिरों तथा स्मारकों की दीवारों पर उकेरे गए इन
“महिला फैरो” के नाम एवं प्रतिक चिन्हों को भी नष्ट करने तथा इन “महिला फैरो” के
साहित्य को भी नष्ट करने का प्रयत्न किया गया था|
3. प्राचीन मिस्त्र में कानून व्यवस्था
आधिकारिक तौर पर, प्राचीन मिस्त्र की कानून
व्यवस्था का मुखिया, साम्राज्य पर शासन करने वाला “फैरो” होता था| जो अपने राज्य
के लिए कानून का निर्माण करने, उसे सम्पूर्ण राज्य में लागू करवाने, न्याय प्रदान
करने, साम्राज्य की सेना का नेत्रत्तव करने, साम्राज्य में प्रशासनिक इकाई के
सहायता से सम्पूर्ण राज्य में व्यवस्था बनाये रखने के लिए जिम्मेदार होता था| एक
अवधारणा के अनुसार, प्राचीन मिस्त्र के निवासी, अपने “फैरो” को “मात” के रूप में मानते
थे| यद्दपि, ऐसे भी प्रमाण मिले हैं कि, प्राचीन मिस्त्र में कोई “कानून संहिता”
मौजूद नहीं थी|
प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता से प्राप्त हुये कुछ
अदालती दस्तावेजों के अध्ययन से पता चलता है कि, प्राचीन मिस्त्र का कानून सही और
गलत नज़रिए वाले एक व्यावहारिक ज्ञान पर आधारित था, जो समझौते के माध्यम से विवाद
को हल करने पर बल देता था| न कि, सख्ती से विधियों / नियमों के एक जटिल सेट का
अनुपालन कराने पर बल देता था| प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता के “नवीन साम्राज्य” (New
Kingdom) में “केनबैट” के रूप में प्रसिद्ध बुजुर्गों की स्थानीय परिषदें, छोटे
दावों और लघु विवादों वाले क़ानूनी मामलों में फैसला देने के लिए उत्तरदायी होती थीं|
हत्या, लेन-देन सम्बन्धी मामले, विशाल भूमि हड़पने, डकैती, कब्रों / मकबरों की लूट, आदि गम्भीर मामलों की सुनवाई “ग्रेट केनबैट” के अधीन रखी जाती थी| जिसकी अध्यक्षता, फैरो की सेना के सेनापति / वज़ीर अथवा उच्च प्रशासनिक अधिकारी किया करते थे| ऐसे अति-गम्भीर मामलों में अन्तिम निर्णय साम्राज्य के फैरो के पास सुरक्षित होता था| अभियोगी और बचाव पक्ष को मामले की सुनवाई के दौरान फैरो के दरबार / अदालत में उपस्थित होना अनिवार्य होता था| साथ ही, दोनों पक्षों को सुनवाई के दौरान शपथ लेनी होती थी कि, उन्होंने जो कुछ भी कहा, सत्य कहा| इससे ऐसा प्रतीत होता है कि, प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता में अदालतों का स्वरुप वर्तमान समय की अदालतों जैसा ही रहा होगा|
कुछ मामलों में फैरो, वकील तथा न्यायाधीश, दोनों
ही भूमिकायें निभाता था और एक आरोपी से उसका बयान लेने और किसी मामले से सम्बन्धित
सह-साजिशकर्ता का नाम निकलवाने के लिए यातनास्वरूप, आरोपी को मार-पीट सकता था| इससे
कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि, आरोप बड़ा है अथवा छोटा, दरबार / अदालत को आरोपी से सच
निकलवाने के लिए उसके साथ कुछ भी करने के अधिकार प्राप्त थे| दरबार / अदालत में
मौजूद लेखक, किसी मामले की सुनवाई के दौरान पेश की गयीं सभी शिकायतों, गवाहियों
तथा नयायाधीश / फैरो के द्वारा दिये गये निर्णयों को भविष्य में सन्दर्भ के लिए
संकलित कर लेते थे|
अपराध की गम्भीरता के आधार पर, छोटे अपराधों के
लिये सजा में सम्मिलित था, जुर्माना, मार-पीट करना, कोड़े लगवाना, कारावास में डलवा
देना, चेहरा बिगाड़ देना अथवा राज्य से निष्काषित कर देना, आदि| हत्या, डकैती, ज़मीन
को हड़पने, कब्रों को लूटने जैसे गम्भीर अपराधों के दण्डके तौर पर प्राणदण्ड की सजा
दी जाती थी| जिसके अन्तर्गत, सर को धड़ से अलग करवा देना, पानी में डुबाकर मार
देना, फाँसी पर लटकाकर मार देना, जैसी सजायें सम्मिलित थीं| गम्भीर मामलों की
सुनवाई सम्बन्धी मामलों में साम्राज्य के शासक अर्थात् फैरो को अधिकार था कि,
अपराधी को प्राणदण्ड की सजा दिए जाने के बाद में उसकी सजा को उसके परिवार तक बढाया
जा सकता था|
4. प्राचीन मिस्त्र में कृषि व्यवस्था
प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता, नील नदी और अन्य अनुकूल भौगोलिक विशेषताओं के एक उत्कृष्ट मिश्रण ने प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता / संस्कृति की सफलता में योगदान दिया| जिसमें सबसे महत्तवपूर्ण कारण था, नील नदी में प्रति वाढ आने वाली बाढ़| जिसके परिणामस्वरूप, सम्रद्ध उपजाऊ मिट्टी का निर्माण होता था, जोकि कृषि के लिए काफी उपयोगी होती थी| इस प्रकार, प्राचीन मिस्त्रवासी बहुत अत्यधिक अनाज एवं खाद्यान्न सामग्री उत्पादित करने में सफल रहे|
प्राचीन मिस्त्र के कुछ स्थलों से ऐसे भी
साक्ष्य मिले हैं कि, प्राचीन मिस्त्रवासी आपदाकाल के लिए बड़े-बड़े भण्डार गृहों
एवं स्मारक स्थलों में अन्न एवं खाद्यान्न सामग्री को संरक्षित करके रखा करते थे| जिसके
कारण, प्राचीन मिस्त्र की जनसंख्या ने समय और संसाधनों को सांस्कृतिक, तकनीकी और
कलात्मक गतिविधियों के लिए समर्पित किया| प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता की एक
महत्तवपूर्ण विशेषता “भूमि प्रबन्धन” थी, जिसमें “करों का निर्धारण”, किसी व्यक्ति
विशेष के अधीन आने वाली भूमि के आधार पर ही किया जाता था|
प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता से प्राप्त हुये कुछ
साक्ष्यों एवं अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि, प्राचीन मिस्त्र के लोगों को
कृषि-कार्य और सिंचाई की उच्च तकनीकों की भी जानकारी थी| इसके साथ ही, मिस्त्र की
इस महान प्राचीन सभ्यता में कृषि तथा सिंचाई-कार्य, पूर्ण रूप से नील नदी में
प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ पर निर्भर करता था| प्राचीन मिस्त्रवासी, नील नदी से लेकर,
अपने खेतों तथा उद्द्यानों तक बड़ी-बड़ी नालियाँ खोदा करते थे, जिनके द्वारा नील नदी
की बाढ़ का पानी, उनके खेतों तथा उद्द्यानों तक पहुँचता था, जिससे इनके खेतों की
सिंचाई होती थी| इसके अतिरिक्त, प्राचीन मिस्त्रवासी बड़े-बड़े गड्ढे और हौदियाँ भी
खोदा करते थे, जिसमें नील नदी की बाढ़ के पानी को संरक्षित करके रखा जाता था| इन
विशाल गड्ढों एवं हौदियों को पत्तों एवं पेड़ों की छाल से निर्मित चटाईयों के
द्वारा ढांक के रखा जाता था|
कुछ इतिहासकारों एवं पुरातत्त्ववेत्ताओं ने
प्राचीन मिस्त्र में तीन प्रकार की जलवायु की पहचान की है, जोकि निम्नलिखित है:
1. आखेट [बाढ़]
2. पेरेट [रोपण]
3. शेमु [कटाई]
“आखेट” अर्थात् बाढ़ का मौसम जून से लेकर
सितम्बर तक रहता थे| जो नील नदी के तट पर उपजाऊ मिट्टी एवं महत्तवपूर्ण खनिजों से
भरपूर, एक विशाल परत का निर्माण करता था, जो उस काल में मिस्त्र में उगाई जाने
वाली फसलों के के काफी अच्छी स्थिति होती थी| बाढ़ का मौसम समाप्त होने के बाद, अक्टूबर
से फरवरी तक, “पेरेट” अर्थात् रोपण का मौसम होता था| इस मौसम में नील नदी की बाढ़ का
पानी कम हो जाता था और प्राचीन मिस्त्रवासी इस समय अपने खेतों में जुताई-कार्य और
बीज बोने का कार्य किया करते थे|
प्राचीन मिस्त्र में वर्षा कम होती थी, जिसके
कारण किसान अपने खेतों की सिंचाई के लिए नील नदी पर आश्रित रहते थे| मार्च से लेकर
मई तक का मौसम, “शेमु” अर्थात् कटाई का मौसम होता था| इस मौसम में, प्राचीन
मिस्त्र साम्राज्य के किसान हंसिया, कुल्हाड़ी, जैसे हथियारों से अपनी फसलों की
कटाई का कार्य किया करते थे और अपनी फसलों एक एकत्रित करके विशाल भण्डार गृहों तथा
स्मारक स्थलों में अपने राज्य की जनता के लिए संरक्षित करके रखते थे|
प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता से प्राप्त हुये
कृषि से सम्बन्धित अवशेषों एवं साक्ष्यों से पता चलता है कि, प्राचीन मिस्त्र के
निवासी अपने खेतों में “एमार” और “जौ” तथा कई अन्य प्रकार के अनाजों को उगाया करते
थे| प्राचीन मिस्त्रवासी, इन सभी अनाजों का प्रयोग, प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता के
दो प्रमुख खाद्य पदार्थों, “ब्रैड” अर्थात् रोटी और “बियर” बनाने में किया करते
थे|
“सन” के पौधों को, जिन्हें फूलने से पहले ही
तोड़ लिया जाता था| इन्हें, इनके तनों से तन्तुओं को प्राप्त करने के लिए उगाया
जाता था| प्राचीन मिस्त्रवासी, इन तन्तुओं को हाथ से पतला करके धागे का रूप देते
थे, जिसका उपयोग सन की चादरें, चटाईयां, वस्त्र, आदि बनाने में किया करते थे|
नील नदी के तट पर उगने वाले “पेपिरस” का
प्रयोग, प्राचीन मिस्त्रवासी, कागज बनाने के लिए किया करते थे| इसके साथ ही, इस
सभ्यता से प्राप्त हुये कृषि सम्बन्धी अवशेषों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है
कि, प्राचीन मिस्त्र में, सब्जियों एवं फलों को बड़े-बड़े उद्यानों में उगाया जाता
था| इनमें से प्राचीन मिस्त्र के लोगों के द्वारा उगाई जाने वाली कुछ प्रमुख
सब्जियां तथा फल लीक, लौकी, लहसुन, खरबूजे, स्क्वैश, दालें, सलाद पत्ता, आदि थे|
5. प्राचीन मिस्त्र में पशुपालन
सभी प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं तथा नगरीय
सभ्यताओं की भांति, प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता से भी पशुपालन के साक्ष्य एवं अवशेष
प्राप्त हुये हैं| जिनसे ज्ञात होता है कि, प्राचीन मिस्त्रवासियों ने भी पशुओं को
पालतू बनाया था| प्राचीन मिस्त्र के निवासियों का ऐसा मानना था कि, “मनुष्यों, पेड़-पौधों
तथा पशुओं के बीच एक संतुलित सम्बन्ध और लौकिक व्यवस्था का एक अनिवार्य तत्व होता
है”| इसलिए, इस महान प्राचीन सभ्यता में, मनुष्यों, जानवरों तथा पौधों को एक-साथ “एकल
पिण्ड” में सदस्य के रूप में प्रदर्शित किया जाता था|
प्राचीन मिस्त्रवासियों के लिए उनके मवेशी सबसे महत्तवपूर्ण पशुधन हुआ करते थे| प्राचीन मिस्त्र के निवासियों के द्वारा पाले जाने वाले प्रमुख जानवरों में गाय, भेड़, बकरी, कुत्ता, बिल्ली, सूअर, आदि थे| इन पशुओं का उपयोग, प्राचीन मिस्त्रवासी प्रायः इनसे दूध प्राप्त करने, दूध से निर्मित खाद्य-पदार्थ बनाने में, मांस प्राप्त करने में, ऊन प्राप्त करने, आदि में किया करते थे| इन पशुओं से प्राप्त होने वाली सामग्री से, प्राचीन मिस्त्रवासी, अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए व्यापार किया करते थे| अतः ये पशु, प्राचीन मिस्त्रवासियों की आय का एक महत्तवपूर्ण स्त्रोत थे|
इन पशुओं के अतिरिक्त, प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि, प्राचीन मिस्त्र के निवासी, “पौल्ट्री” अर्थात् बत्तख, मुर्गी, हंस, बगुला, कबूतर जैसे पक्षियों को भी पाला करते थे| वे इन पक्षियों को, जाल में कैद करके अपने खेतों तथा उद्यानों में रखा करते थे और इन्हें, दाना-पानी खिला-पिलाकर मोटा-ताज़ा करते थे| इसके बाद प्राचीन मिस्त्रवासी, अपने मनोरंजन के लिए इन पक्षियों की आपस में लडाई करवाया करते थे|
इसके अतिरिक्त, प्राचीन काल में, नील नदी में
छोटो-बड़ी मछलियों की अनेकों प्रजातियाँ पायी जाती थीं, जिनकी संख्या, उस काल में
अत्यधिक थी| यह मछलियाँ, प्राचीन मिस्त्र के निवासियों की आय के प्रमुख स्त्रोतों
में से एक थीं| इन मछलियों को नदी से पकड़कर, प्राचीन मिस्त्रवासी इनको मिस्त्र के
बाज़ारों में बेचकर अपना जीविकोपार्जन किया करते थे|
इन सभी पशु-पक्षियों के साथ-साथ, प्राचीन
मिस्त्र के निवासी बैल, खच्चर, ऊँट जैसे जानवरों को भी पाला करते थे| बैलों का
प्रयोग, वे लोग प्रायः खेतों में बीज बोने और जुताई-कार्य में किया करते थे| खच्चर
तथा ऊँट जैसे जानवरों का प्रयोग, प्राचीन मिस्त्रवासी प्रायः बोझा ढोने, बड़े-बड़े
निर्माण-कार्यों में प्रयुक्त होने वाली निर्माण-सामग्री को लाने-लेजाने तथा एक
स्थान से दूसरे स्थान पर आने-जाने के लिए परिवहन के साधन के रूप में किया करते थे|
अतः स्पष्ट है कि, प्राचीन मिस्त्रवासियों के लिए उनके पशु-पक्षी ही उनका असली धन
थे|
निष्कर्ष
अतः इस अध्ययन के आधार पर हम कह सकते हैं कि, प्राचीन
मिस्त्र की अपने समय की अति-विकसित, महानतम, शक्तिशाली, समृद्ध सभ्यताओं में से एक
थी| जोकि, अपने महानतम एवं शक्तिशाली शासकों अर्थात् फैरो तथा उनकी विशाल सेनाओं, अति-विकसित
तथा समृद्ध भव्य नगरों और यहाँ के फैरो तथा समृद्ध लोगों के द्वारा निर्मित करवाये
गए मन्दिरों, पिरामिडों, स्मारकों, स्फिंक्स, आदि से सज्ज सभ्यता थी| इस महान
प्राचीन सभ्यता में, प्रशासनिक कार्यों के लिए, फैरो (शासक / राजा), अपने
मंत्रियों, उच्च प्रशासनिक अधिकारिओं और सैनिकों से युक्त एक समृद्ध प्रशासनिक
इकाई पर निर्भर था|
इस प्राचीन सभ्यता में भव्य भवन, फैरो तथा उनके
परिवारों के रहने के लिए महल, फैरो के द्वारा निर्मित कराये गए पिरामिड, स्मारक-स्थल,
स्फिंक्स, मन्दिर, एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन के लिए बड़ी-बड़ी और चौड़ी सड़कों
का एक विशाल नेटवर्क था| ऐतिहासिक स्त्रोतों के अध्ययन से ऐसा प्रतीत होता है कि, प्राचीन
मिस्त्र के निवासियों के पास नगर निर्माण, भवन निर्माण तथा सड़क निर्माण जैसी चीज़ों
की उच्च तकनीकी एवं अच्छा-खासा ज्ञान था|
साथ ही, प्राचीन मिस्त्र के साम्राज्य में,
वर्तमान आधुनिक युग की भांति, अदालतों, नयायाधिशों तथा वकीलों की भी व्यवस्था थी| जिसमें
गम्भीर मामलों में अन्तिम निर्णय, फैरो के पास सुरक्षित होता था| प्राचीन
मिस्त्रवासियों के पास कृषि एवं सिंचाई-कार्य की भी उच्च तकनीक तथा जानकारी होने
के साक्ष्य मिले है, जिनसे ज्ञात होता है कि, इस सभ्यता में कृषि अपने शिखर पर थी
और यह मिस्त्रवासियों की जीविका का एक प्रमुख स्त्रोत भी थी| इसके साथ ही प्राचीन
मिस्त्र की सभ्यता में लेन-देन से सम्बन्धित मामलों, व्यापारिक कार्यों, आदि का
लेखा-जोखा रखने के लिए लेखाकार नामक प्रशासनिक अधिकारी के द्वारा ऐसे सभी कार्यों
को सूचीबद्ध तरीके से लिखकर रखने के भी प्रमाण मिलते हैं|
साथ ही, प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता में
लेखन-कार्य तथा साहित्य-रचना के भी प्रमाण मिलते हैं| इस महान प्राचीन सभ्यता में,
फैरो के दरबार में उपस्थित रहने वाले लेखक तथा साहित्यकार, अपने द्वारा लिखे गए
साहित्यिक ग्रन्थों तथा वृत्तांतों में अपने साम्राज्य के फैरो और उनके परिवार के
सदस्यों की महानता, उनकी शक्ति, उनकी दिव्यता, उनके पारिवारिक सम्बन्धों, उनके
कुशल प्रशासन, उनके द्वारा करवाये गए निर्माण-कार्यों, आदि का बढ़-चढ़कर वर्णन किया
करते थे|
इन सभी तथ्यों के अध्ययन से पता चलता है कि, प्राचीन
मिस्त्र की सभ्यता, एक राष्ट्र / साम्राज्य के रूप में, सामाजिक स्तर से, प्राचीन
विश्व की एक अति-विकसित, अद्भुत, महानतम, शक्तिशाली तथा समृद्ध सभ्यता थी| जो अपने
अध्ययन एवं खोज-कार्यो के प्रारम्भ से ही सामान्य व्यक्ति से लेकर विद्वानों,
इतिहासकारों, पुरातत्त्ववेत्ताओं, इतिहास के विभिन्न विषयों का अध्ययन तथा R&D
करने वाले विद्यार्थियों तक, सभी को अपनी तरफ आकर्षित करती रही है और आगे भी करती
रहेगी|
इतिहास के क्षेत्र में अध्ययन, सर्वेक्षण,
अन्वेषण, आदि के आरम्भ होने के बाद से ही इस महान प्राचीन सभ्यता पर अध्ययन तथा R&D
करने वाले अनेक विद्वानों, इतिहासकारों, पुरात्तववेत्ताओं तथा विद्यार्थियों के
द्वारा अनेकों अध्ययन, सर्वेक्षण और अन्वेषण-कार्य किये गये| जिनमें से काफी सारे
अध्ययन तथा R&D को इन लोगों के द्वारा ऐतिहासिक ग्रन्थों, मेनुअल, पुस्तकों
तथा यात्रा वृतांतों के रूप में लिपिबद्ध भी किया गया| जिनकी सहायता से हमें इस
प्राचीन सभ्यता से जुड़ी हई काफी सारी रोचक एवं महत्तवपूर्ण जानकारियां प्राप्त हो
सकी हैं| इन ऐतिहासिक ग्रन्थों, मेनुअल, पुस्तकों तथा यात्रा वृतांतों को पढ़कर
हमें, इस सभ्यता के विषय में और भी नयी-नयी जानकारियां प्राप्त करने की उत्सुकता
उत्पन्न होती है| इसके साथ ही, इस प्राचीन सभ्यता से सम्बन्धित अध्ययन तथा R&D
करने की प्रेरणा भी मिलती है|
प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता पर अभी तक
विद्वानों, इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं तथा विद्यार्थियों के द्वारा अनेकों
अध्ययन और सर्वेक्षण-कार्य किये जा चुके हैं और आने वाले समय में भी किये जाते
रहेंगे, जिनसे पूरी दुनिया को इस महान प्राचीन सभ्यता से सम्बन्धित नवीन
जानकारियां तथा ज्ञान प्राप्ति होगी| प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता से सम्बन्धित नवीन
अध्ययन, R&D और खोज-कार्यों का महत्तव, इसलिए और अधिक हो जाता है, क्योंकि,
अभी भी इस सभ्यता से सम्बन्धित कई ऐसे राज हैं, कई ऐसे विषय हैं, जिनपर से अभी भी
पर्दा उठाना बाकी है|
जिनमें से कुछ प्रमुख अनसुलझे विषय, जैसे-कि: प्राचीन
मिस्त्र के साम्राज्य पर शासन करने वाली मिस्त्र की अन्तिम फैरो “क्लियोपेट्रा” की
कब्र / समाधि-स्थल की खोज, प्राचीन मिस्त्र के सर्वाधिक शक्तिशाली तथा महान फैरो “तुतनखामुन”
की माँ से सम्बन्धित विषय पर विभिन्न इतिहासकारों तथा पुरातत्ववेत्ताओं में मतभेद,
वर्तमान में काइरो स्थित “इजिप्शियन म्यूजियम” में रखी “दी यंगर लेडी” की ममी, जिसे
1898 ई० में आर्कियोलोजिस्ट “विक्टर लोरेट” के द्वारा “राजाओं की घाटी” (Valley of
the Kings) के मकबरा संख्या “KV35” / “KV35YL” से खोजा गया था| कुछ इतिहासकारों तथा
पुरातत्ववेत्ताओं का मत है कि, “दी यंगर लेडी” की ममी, सम्भवतः प्राचीन मिस्त्र की
महान, शक्तिशाली तथा बेहद खुबसूरत महिला फैरो मानी जाने वाली “नेफरतिति” की है|
हाल ही में हुये, DNA टेस्ट्स के आधार पर, “दी
यंगर लेडी” की ममी को, प्राचीन मिस्त्र के महान तथा शक्तिशाली फैरो “तुतनखामुन” की
माँ के रूप में चिन्हित किया गया है| “डिस्कवरी चैनल” पर प्रसारित होने वाले “जोश
गेट्स” के डॉक्यूमेंट्री शो में “Great Women of Ancient Egypt”, शीर्षक से वर्ष 2018
में प्रसारित हुये शो में “जोश गेट्स” के नेतृत्व में एक टीम के द्वारा आधुनिक
तकनीकी और कलात्मकता का उपयोग करते हुये, “दी यंगर लेडी” की ममी के चेहरे का
पुनर्निर्माण पेश किया था| इस बस्ट का निर्माण किया था, फ्रेंच पेलियोआर्टिस्ट “डेलिसाबेथ
डेनेस” (Daylisabeth Daynes) ने| परन्तु, इन सब चीज़ों के बाद भी, “दी यंगर लेडी”
की ममी का विषय, एक बड़ा रहस्य है| और यह प्रश्न कि, “क्या यंगर लेडी ही महान शासिका
नेफरतिति थीं?” इस प्रश्न को लेकर अभी भी प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता पर R&D तथा अध्ययन करने वाले विभिन्न आधुनिक इतिहासकारों तथा पुरातत्ववेत्ताओं
में काफी मतभेद हैं और इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए अभी भी लोगों के द्वारा इसपर R&D
तथा अध्ययन किये जा रहे हैं|
प्राचीन मिस्त्र के ऐसे ही तमाम अनसुलझे
रहस्यों को सुलझाने के लिए आने वाले समय में और भी अध्ययन तथा R&D के कार्य किये
जाने की आवश्यकता है| जिससे इस सभ्यता से जुड़े हुये बहुत से अनसुलझे रहस्यों पर से
पर्दा उठ सके| साथ ही साथ, पूरी दुनिया को इस महान सभ्यता से सम्बन्धित नवीन
जानकारियां भी मिल सकें| वर्तमान में भी इस प्राचीन सभ्यता के अध्ययन तथा R&D में
बहुत से जिज्ञासु, मेहनती एवं कर्मठ इतिहासकार, पुरात्तववेत्ता, खोजकर्ता और
विद्यार्थी लगे हुये हैं और आने वाले समय में भी प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता पर लोग
अध्ययन और R&D करते रहेंगे और इसी प्रकार से, इस सभ्यता से जुड़े हुये राज, मिस्त्र
के रेगिस्तान की रेतीली भूमि से रेत के नीचे से परत-दर-परत करके दुनिया के सामने
आते रहेंगे|
तो दोस्तों! यह था, “प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता
की श्रृंखला” का “भाग-2”| आशा करता हूँ कि, आपको मेरा यह लेख पसन्द आया होगा| दोस्तों!
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तो दोस्तों! अभी
के लिए इस लेख में बस इतना ही| जल्द मिलते हैं, एक नए लेख के साथ| तब तक के लिये
खुश रहिये, स्वस्थ रहिये, सुरक्षित रहिये और पढ़ते रहिये|
References
Ancient Egypt by David SilvermanIGNOU MA History Books-MHI-01 प्राचीन और मध्ययुगीन समाज [खंड-2 कांस्ययुगीन सभ्यताएँ]
Ancient Egypt
प्राचीन मिस्र
Giza pyramid complex
Egyptian pyramids
Sphinx
Egyptian Mummies
Old Kingdom of Egypt
Fourth Dynasty of Old Kingdom
Pharaohs
5 Great Female Rulers of Ancient Egypt
When Women Ruled the World: Six Queens of Egypt by Kara Cooney
My book Pracheen Vishva Ki Pramukh Nadi Ghati Sabhaytayein/प्राचीन विश्व की प्रमुख नदी घाटी सभ्यताएं (Hindi Edition) Kindle Edition
Announcement! प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता श्रृंखला
प्राचीन मिस्त्र की सभ्यता [भाग 1]
Previous Article: How To Install Ruby On Linux And Windows Machines
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