जैव विविधता एक व्यापक शब्द है, जो जैव-पदार्थों, उनकी आनुवंशिक संरचना और उनके द्वारा गठित समुदायों का विवरण प्रदान करता है| वैश्विक सिद्धान्त के दृष्टिकोण से हमारा पृथ्वी गृह एक एकीकृत तथा एक-दूसरे पर परस्पर निर्भर करने वाला पारितंत्र है|
मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप जैव विविधता का तेजी से नाश हो रहा है और हमारे कई पर्यावरण वैज्ञानिकों, निति-निर्माताओं तथा प्रबुद्ध नागरिकों में इस विषय को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है|
![]() |
जैव विविधता |
पर्यावरण और जैव विविधता एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषय है, जिसपर हमें बड़ी गहराई और गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है| इस विषय पर 150 से अधिक द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और वैश्विक समझौते किये जा चुके हैं| यदि आज हमने पर्यावरण और जैव विविधता के विषय पर गम्भीरता से विचार नहीं किया और इसके प्रति कुछ ठोस कदम नहीं उठाये, साथ ही अपनी आवश्यकताओं तथा भौतिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने के लिये अपनी धरती के पर्यावरण को नुकसान पहुँचाना बन्द नहीं किया, तो इस पृथ्वी पर भविष्य में आने वाली हमारी पीढ़ियों को काफी विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है|
“जैव विविधता सम्मलेन (C.B.D.) 1992, जैव विविधता के विनाश को रोकने, उसके संरक्षण और सतत उपयोग के उद्देश्य से एक अनिवार्य प्रतिबद्धता है|”
जैव विविधता क्या है ?
जैव विविधता सम्मलेन [Convention on Biological Diversity], 1992
2. जैव विविधता के घटकों का सतत उपयोग
3. आनुवंशिक संसाधनों के प्रयोग से उत्पन्न होने वाले लाभ का उचित और न्यायसंगत बंटवारा या समान भागीदारी
जैव विविधता संधि
जून 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित हुये पृथ्वी सम्मलेन में जैव विविधता संधि पर हस्ताक्षर किये गये थे| जैव विवधता संधि दिसम्बर, 1993 में प्रभावी हुयी| पृथ्वी सम्मलेन में इस बात पर सहमति बनी कि, “जीव तथा पादप संसाधनों पर उन देशों का स्वामित्व होना चाहिये, जहाँ वे विकसित होते हैं|” साथ ही, इस पृथ्वी सम्मलेन में यह भी उल्लेख किया गया कि, “इन देशों के संसाधनों से नये उत्पाद उत्पन्न करने वाले देशों को क्षतिपूर्ति प्रदान करनी चाहिये|”
जैव विविधता या जैविक विविधता संधि के महत्त्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित हैं:
1. पारम्परिक ज्ञान, कौशल और अन्वेषणों से उत्पन्न लाभों में समान हिस्सेदारी|
2. पारस्परिक सहमति से बनीं शर्तों पर आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच तथा इसके लिये दाता देश की पूर्व सहमति तथा ग्राही देश के द्वारा लाभ में हिस्सेदारी की प्रतिबद्धता आवश्यक| [अनुच्छेद-19]
3. विकसित देशों द्वारा दक्षिणी आनुवंशिक संसाधनों की सहायता से विकसित नई तकनीकों में तृतीय विश्व की हिस्सेदारी| [अनुच्छेद- 15 और 16]
4. अभिसमय के उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में उठाये गये कदमों के लिये वित्तीय संसाधनों का प्रावधान| [अनुच्छेद-20]
5. अनुदान या रियायती आधार पर विकासशील देशों को वित्तीय संसाधन प्रदान करने के लिये वित्तीय तंत्र की स्थापना| [अनुच्छेद-21]
जैव विविधता या जैविक विविधता संधि की प्रमुख बातें:
1. जैव विविधता संधि वर्ष 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित हुये पृथ्वी सम्मलेन के दौरान अंगीकृत किये गये प्रमुख समझौतों में से एक है|
2. कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी (C.B.D.) पहला व्यापक वैश्विक समझौता है, जिसमें जैव-विविधता विषय से सम्बन्धित समस्त पहलुओं को सम्मिलित किया गया है|
3. इसमें आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हुये विश्व के पारिस्थितिकीय आधारों को बनाये रखने के लिये प्रतिबद्धतायें निर्धारित की गयीं हैं|
4. कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी (C.B.D.) में पक्षकार के रूप में 196 देश सम्मिलित हैं, जिनमें से 168 देशों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं|
5. भारत जैव विविधता समझौते का एक पक्षकार देश है|
जैव विविधता या जैविक विविधता संरक्षण में भारत
भारत, जैव विविधता संरक्षण और वन्य-जीव संरक्षण से सम्बन्धित कई महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में पक्षकार रहा है| इनमें से कुछ जैव विविधता सम्मलेन, वन्य-जीवों तथा वनस्पतियों की विलुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर आधारित रहे हैं|
वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन, “कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एन्देंज़र्ड स्पीशीज ऑफ वाइल्ड फौना एण्ड फ्लोरा-CITES)” एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जिसका पालन राष्ट्र तथा क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन स्वैच्छिक रूप से करते हैं| वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर यह कन्वेंशन विलुप्त होने की कगार पर खड़ी प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने के लिये स्थापित किया गया था| इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जंगली जानवरों और पौधों के नमूनों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार उनके अस्तित्व को खतरे में नहीं डालता है|
भारत विश्व के 17 विशाल विविधतापूर्ण देशों में से एक है| भारत में अनेक प्रकार की वनस्पतियों अर्थात् पेड़-पौधों तथा वन्य जीवों की प्रजातियाँ पायी जाती हैं| जिनमें से कई प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है| भारत सरकार द्वारा समय-समय पर इन विलुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा, संरक्षण तथा इनके सम्वर्धन के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये जाते रहे हैं| साथ ही, भारत सरकार के द्वारा इसके लिये नियम-कानून भी बनाये गये हैं, और अनेक नीतिगत पहलों को भी अपनाया गया है|
भारत के “राष्ट्रीय जैव-विविधता प्राधिकरण” ने हाल ही में “संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम” (UNEP) की सहायता से ग्रामीणों की आजीविका में बेहतरी के नये मानदण्ड स्थापित किये गये हैं|
भारत में जैव विविधता का संरक्षण
भारत में भारत सरकार के द्वारा जैव विविधता के संरक्षण से सम्बन्धित कई नियम-कानून बनाये गये हैं, जिनका सख्ती से पालन किया जाता है| साथ ही, भारत सरकार द्वारा वन्य-जीवन तथा वनस्पति के संरक्षण एवं सम्वर्धन के लिये अनेक प्रोजेक्ट एवं परियोजनाओं की स्थापना की गयी है| जिनमें से कुछ प्रमुख परियोजनाएं निम्नलिखित हैं:
1. प्रोजेक्ट टाइगर या बाघ परियोजना
भारत सरकार के द्वारा “वर्ल्ड वाइड फण्ड फॉर नेचर (WWF) इंटरनेशनल” की सहायता से वर्ष 1973 में “प्रोजेक्ट टाइगर” अथवा “बाघ परियोजना” का आरम्भ किया गया था| “प्रोजेक्ट टाइगर” परियोजना भारत में अपने तरह की पहली पहल थी| “प्रोजेक्ट टाइगर” परियोजना का प्रमुख उद्देश्य भारत में बाघों एवं अन्य वन्य-जीवों की विलुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा एवं संरक्षण तथा उनके प्राकृतिक निवास-स्थानों का संरक्षण एवं सम्वर्धन करना है|
2. मगरमच्छ संरक्षण
3. हाथी परियोजना
पूर्व स्व-स्थायी संरक्षण
वर्तमान समय में मनुष्य के द्वारा अपने निवास-स्थान, भौतिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने के लिये तेजी के साथ वनों एवं वन्य-जीवों को हानि पहुँचाये जाने के परिणामस्वरूप पृथ्वी गृह के पर्यावरण को बेहद नुकसान पहुँच रहा है| जिसकी वजह से पृथ्वी की पारिस्थितिकी पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है| पृथ्वी पर कम होते जा रहे वनों की संख्या के परिणामस्वरूप, मनुष्य एवं जानवरों के मध्य संघर्षों की संख्या बढ़ती जा रही है|
तीव्र गति से बदलती हुयी इन परिस्थितियों के कारण वन्य-जीवों एवं वनस्पतियों विलुप्तप्राय प्रजातियाँ, विलुप्त होने के इतना निकट हैं कि इनके संरक्षण के लिये वैकल्पिक तरीकों से अनेक परियोजनाओं एवं वन्य-जीवन संरक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत की जा रही है| ताकि, तेजी से विलुप्त होती जा रही वन्य-जीवों एवं वनस्पतियों की प्रजातियों को बचाया जा सके|
इस रणनीति को “पूर्व स्व-स्थायी संरक्षण” के रूप में जाना जाता है| अर्थात्, वनस्पति उद्यान या प्राणी उद्यान, सावधानीपूर्वक नियंत्रित स्थिति में उनके प्राकृतिक निवास-स्थलों के बाहर, कृतिम रूप से निर्मित किये गये वे स्थल, जहाँ वन्य-जीवन वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञ होते हैं| कृतिम रूप से निर्मित इन स्थलों में कृतिम रूप से प्रबन्धित शर्तों के तहत विलुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण, सम्वर्धन और उनकी संख्या की गणना की जाती है|
पर्यावरण और जैव विविधता से सम्बन्धित पारित किये गये महत्त्वपूर्ण भारतीय अधिनियम
1. मत्स्य अधिनियम, 1897
2. भारतीय वन अधिनियम, 1927
3. जानवर क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960
4. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972
5. जल (प्रदूषण-निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974
6. वन संरक्षण अधिनियम, 1980
7. वायुमण्डल (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1981
8. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
9. जैव विविधता अधिनियम, 2002
10. अनुसूचित-जाति और अन्य परम्परागत वनवासी (अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006
स्त्रोत
0 Comments