Book Review: Paddle Paddle by Neeraj MusafirBook Review: Paddle Paddle by Neeraj Musafir




Title: Paddle Paddle
Author:  Neeraj Musafir
Publisher: Redgrab Books; First edition (25 November 2017)
Language: Hindi
Pages: 216 pages
Paperback Price (amazon.in): ₹ 131.00
Kindle Edition (amazon.in): ₹ 131.00

About the Author
मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त, नीरज मुसाफ़िर पेशे से दिल्ली मेट्रो में इंजीनियर हैं मगर यह केवल छद्म आवरण है; इनका असली परिचय यह है कि यह जीवट क़िस्म के घुमन्तू हैं। साइकिल से घूमने निकलते हैं तो हजारों किलोमीटर नाप डालते हैं; पैदल निकलते हैं तो हिमालय पर चढ़ बैठते हैं, बाइक से निकले तो पूरा भारत छान बैठे और कहीं रेल और बस यात्रा की बात हो तो कहने ही क्या... अपना देश पीछे छूट जाता है। यह अब तक केवल रेल से ही एक लाख सत्तर हज़ार किलोमीटर की यात्रा पूरी कर चुके हैं; पैदल तथा अन्य साधनों का हम केवल अनुमान लगा सकते हैं। लेखक, वर्ष 2008 से अपना यात्रा-ब्लॉग लिख रहे हैं, जिसमें उनके द्वारा की गई सभी यात्राओं का सचित्र और रोचक वर्णन मिलता है। 2012 में लखनऊ में आयोजित हुए अंतरराष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन में वर्ष के सर्वश्रेष्ठ यात्रा-ब्लॉगर' सम्मान से सम्मानित किये गये। दैनिक जागरणऔर कादम्बिनीसमेत विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में यात्रा-वृत्तांत लेखन।

About the Book
पैडल पैडल’ लेखक के द्वारा लिखित एक यात्रा वृतांत है, जिसमें लेखाल के द्वारा साइकिल से की गयी लद्दाख की यात्रा और अन्य यात्राओं का वर्णन है| पुस्तक की भाषा-शैली सरल और रोचक है|  जब लेखक ने अपने एक मित्र की देखा-देखी अत्यधिक महँगी साइकिल खरीद ली, तो उनके सामने प्रश्न उठा, कि अब इसका क्या करें? यही प्रश्न धीरे-धीरे उत्तर में बदल गया, और महाशय ने आव देखा न ताव; पहुँच गए साइकिल लेकर मनाली; फिर मनाली से लेह, आगे लेह से श्रीनगर; और कुल लगभग 950 किलोमीटर की दुर्गम और कठिन यात्रा कर डाली; इसके साथ ही लोगों में फैले इस भ्रम को भी तोड़ दिया कि, दुर्गम इलाकों में साइकिलिंग, केवल विदेशी ही कर सकते हैं, भारतीय नहीं। इस यात्रा से पहले, और यात्रा के दौरान, लेखक के सामने तमाम चुनौतियाँ आर्इं। उन्होंने इन चुनौतियों का सामना किस तरह किया, यह भी कम रोचक नहीं है। यह यात्रा, वर्ष 2013 के जून महीने में तब की गई थी, जब उत्तराखंड़ में केदारनाथ त्रासदी घटित हुई थी। तब पूरे हिमालय में प्रकृति ने कहर बरपाया था। ऐसे में लद्दाख में क्या हो रहा था; एक साइकिल सवार को किन-किन प्राकृतिक व मानवीय समस्याओं का सामना करना पड़ा, और वह कैसे इनसे पार पाया; यह पढ़ना बेहद रोमांचक होगा।
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