परिचय
माया सभ्यता, जिसका आरम्भ संभवतः 1500 ई. पू. में हुआ। यह सभ्यता 300 ई. से 900 ई. के दौरान अपनी उनत्ति के शिखर पर पहुंची। माया सभ्यता अमेरिका की प्राचीन ग्वाटेमाला, बेलिजे, दक्षिण-पूर्व मैक्सिको, होंडुरास, यू कॉटन प्रायद्वीप तथा अल सेल्वेडोर के पश्चिमी इलाकों तक विस्तृत थी। यद्द्यपि माया सभ्यता का अंत 16 वीं शताब्दी में हुआ, किन्तु इसका पतन संभवतः11 वीं शताब्दी से आरम्भ हो गया था।
नगर नियोजन
माया सभ्यता कोई स्वीकृत इकाई के रूप में नहीं थी, बल्कि बिखरे हुए गाँवों एवं शहरों की सांस्कृतिक इकाई थी। हालांकि गाँव और शहर आपस में जुड़े हुए जरूर थे, परंतु उनका बड़ा केन्द्र बिंदु 'शहर' राज्य के अधीन था। यहाँ एक समय में चार बड़े प्राथमिक केन्द्र थे, जिनका राजवंश क्रमशः टिकल, कलकमुल, कोपान, और पोलेंके था।
माया सभ्यता की बस्तियों की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि सभी बस्तियों में शहर एवं उत्सव प्रमुख केन्द्र थे। माया सभ्यता के नगरों की बनावट इस तरह की थी कि उसके केन्द्र में उत्सव स्थित होता था। जिसके चारों ओर विशाल चौक होता था। उसके बाद शाही कर्मचारियों और पुरोहितों के भवन, मंदिर आदि होते थे और सबसे आखिर में आम जनता के भवन होते थे।
ऊपरी माया सभ्यता में 'सेनोट्स' अर्थात कुओं के भी प्रमाण प्राप्त होते हैं। जिनका प्रयोग मायावासी अपनी दैनिक आवश्यकताओं के लिए किया करते थे।
भवन निर्माण कला
माया सभ्यता के भवनों की स्थापत्य की एक प्रमुख विशेषता थी चूना-गारा और टोडा मेहराब का प्रयोग। टोडा-मेहराब में पत्थरों को एक के ऊपर एक इस प्रकार से रखा जाता था कि 'मेहराबी छत' का निर्माण हो जाता था। इसके लिए वजन और आकार के संतुलन का भी ध्यान रखा जाता था। यहाँ के भवनों का आकार काफी भव्य होता था। साथ ही उसमें नक्काशी का भी प्रयोग किया जाता था।
यहाँ के विशाल भवनों में पिरामिड, बालकोर्ट, विशाल द्वार, स्नानागार आदि महत्वपूर्ण थे।
'यूआक्साक्तन' माया सभ्यता का एक महत्वपूर्ण शहर था, उसमें माया सभ्यता की सारी विशेषताएं मौजूद थीं। यहाँ की प्रमुख विशेषता थी, यहाँ का मंदिर पिरामिड। इसमें चौड़ी सीढ़ियाँ बनी होती थीं, जिन्हें गचकारी नकाब से सजाया जाता था। यहाँ तीन मंदिरों का एक समूह प्राप्त हुआ है, जिसमें चौड़ी सीढ़ियाँ तथा अलंकृत छत के शिखर एक-दूसरे के आमने-सामने बने हुए थे। धीरे धीरे हुए तकनीकी विकास के साथ इन मंदिरों में कई प्रकार की इमारतें बनने लगीं।
पहली शताब्दी ई. में उत्तरी एको-पोलिस पर तीन बड़े तथा दो छोटे चबूतरे बनाये गए थे। उनकी सीढ़ियों को भी गचकारी रंग से अलंकृत किया गया था। गचकारी मुखोटों पर बने देवताओं के चित्रों को शाशक वर्ग संभवतः अपना देवता मानते थे तथा देवी देवताओं तथा शाशकों के बीच एक खास संबंध स्थापित हो गया था। हालांकि माया सभ्यता में भव्य इमारतों के अलावा सर्वसाधारण के रहने के लिए साधारण और देसी घरों के अवशेष भी प्राप्त होते हैं।
सड़कों का निर्माण
माया सभ्यता की एक विशेषता उनके द्वारा बनाई गई सड़कें भी थीं। माया वासियों ने चौड़ी चौड़ी सड़कों का निर्माण किया था, जिन्हें 'स्केब' कहा जाता था। ये सड़कें माया बस्तियों को शहरों से जोड़ती थीं। कुछ बड़ी सड़कें शहरों को एक दूसरे से जोड़ती थीं। इन सड़कों का निर्माण माया वासियों द्वारा जंगलों और दलदलों में भी किया गया था।
माया वासियों द्वारा इन सड़कों के निर्माण का उद्देश्य था कि व्यापारियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में परेशानी ना हो और शहरों के प्रसाशनिक कार्यों को आसानी से किया जा सके। ये सड़के ना केवल अंदरुनी भागों को जोड़ती थीं, बल्कि बड़े बड़े शहरों को भी जोड़ती थीं।
समुद्र मार्ग का निर्माण
माया वासियों ने संभवतः जलमार्गों का भी निर्माण किया था। कोलंबस ने माया वासियों की नोकाओं को देखा था। समुद्री मार्गों के प्रयोग का उद्देश्य भी संभवतः व्यापार ही रहा होगा।
प्रशासन
माया शहर के मुखिया 'असली पुरुष' होते थे। यह पद न तो चयनित था और न ही मनोनीत, बल्कि यह पद आनुवंशिक या पैतृक था। माया सभ्यता की शाशन व्यवस्था के संबंध में हमें कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती है। कभी कभी रानियाँ भी शाशन करती थीं। राजा की मृत्यु के बाद उसका बड़ा बेटा सिंघासन पर बैठता था। राजा का बहादुर होना आवश्यक था। एक निडर और बहादुर शाशक ही साम्राज्य का विस्तार एवं उसकी सुरक्षा कर सकता था।
राजा के सिंघासन पर बैठते समय देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि देने का भी प्रचलन था। राजा अभिजात वर्ग एवं पुरोहितों की सहायता से शाशन चलाया करते थे। राजा अपने परिवार के साथ भव्य महलों में रहते थे। उनकी सेवा में बड़ी संख्या में दास और दासियाँ लगे होते थे।
'असली पुरुष' अर्थात राजा माया सभ्यता के राज्यों के अलौकिक और लौकिक प्रितिनिधि होते थे। इनके अधीन स्थानीय सरदार होते थे, जिन्हें 'उहाऊ' या 'बताबोब' के नाम से जाना जाता था। बताबोब पर शहर की देखरेख की जिम्मेदारी होती थी। शहर में नगर परिषद भी होती थी, जिनके अधिकारी बताबोब के मातहत होते थे। परंतु इनको बताबोब के कार्य पर रोक लगाने का अधिकार था।
बताबोब झगड़े भी सुलझाया करते थे। पुजारी लोग जो सलाह देते थे, उनका पालन करवाने की जिम्मेदारी भी बताबोब की ही होती थी। इस प्रकार बताबोब प्रांत का मुखिया होता था, परंतु प्रांत का नेतृत्व युद्धनायक करता था, जिन्हें 'नाकोम' कहा जाता था। आवश्यकता पड़ने पर बताबोब भी सेना का नेतृत्व कर सकते थे। ये लोग पालकी में घूमा करते थे।
माया सभ्यता में नोकरशाही के भी प्रमाण मिलते हैं, जो आमतौर पर काफी सख्त होती थी। इसमें समाज के प्रभुत्त्वशाली लोग होते थे। सामान्यजन और किसान अन्य उच्च वर्ग के लोगों की सेवा किया करते थे। ये लोग भवन निर्माण का कार्य भी किया करते थे।
माया सभ्यता में कृषि कार्य
माया वासी कई तरह की फसलें भी उगाया करते थे। फलों, रंग, इत्र बनाने वाले पौधों की खेती भी अलग अलग प्रकार से की जाती थी। मक्का माया सभ्यता के लोगों द्वारा उगाई जाने वाली एक प्रमुख फसल थी। इसके अलावा यहाँ के लोग लौकी, फलियाँ, कुम्हड़ा, मीठा कसावा भी उपजाया करते थे।
भूमि और नमक के भंडार पर सामुदायिक मिल्कियत होती थी। हालांकि समुदाय के लोगों को फसल उपजाने तथा खेती करने के लिए भूमि भी आबंटित होती थी।
माया सभ्यता में जलाशय और नहर निर्माण
माया सभ्यता के छेत्रों में पानी की काफी समस्या थी, हालांकि वर्षा खूब होती थी। परंतु वर्षा का पानी जमीन पर टिक नहीं पाता था या जमीन उसे सोख लेती थी। माया वासियों के पास कुशल कारीगर थे, जिन्होंने प्लाजा के निकट पानी सोखने वाले एक पूरे चूने-पत्थर, तेग को बंद करके एक विशाल जलाशय बनाया था।
देवी-देवता
'चाक' उनके वर्षा के देवता थे, जबकि 'यूम कॉक्स' उनके फसल के देवता थे। माया वासियों द्वारा खेती का आरंभ करने से पहले इन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना भी की जाती थी। माया वासी आमतौर पर पौधों को रोपने के लिए शुभ दिन का इंतजार करते थे।
माया समाज में 'अहकिन' नाम का एक पुजारी होता था, जो आमतौर पर शिक्षक की भूमिका निभाता था। 'अहकिन' नामक ये पुजारी माया सभ्यता के लोगों को नक्काशीदार लिपि पढ़ना और पंचांग की व्याख्या करना भी सिखाता था।
कर-व्यवस्था
माया वासी संकट के दिनों के लिए अनाज भी जमा करते थे। परंतु निचले तबके के लोगों को राजस्व या नज़राना भी देना पड़ता था। किसान फसल का एक हिस्सा राजस्व अथवा कर के रूप में जमा करवाते थे। इसके साथ ही उन्हें सरदार एवं पुजारियों के खेतों पर बेगार में काम भी करना पड़ता था। मार्गों के निर्माण में भी साधारण जनता और किसानों को मुफ़्त में श्रम देना पड़ता था। सार्वजनिक इमारतों के निर्माण के लिए भी इन लोगों से मुफ़्त में श्रम लिया जाता था। आम जनता और किसानों के द्वारा दिये गए राजस्व अथवा कर पर सरदार, पुजारी, सैनिक, असैनिक एवं प्रसाशनिक अधिकारी मौज मस्ती किया करते थे।
युद्ध में बंदी बनाये गए लोगों से श्रम करवाना
युद्ध में पकड़े गए सैनिकों को दास बना लिया जाता था। इन बंदियों से तरह तरह के काम करवाए जाते थे। इन युद्ध बंदियों में कुशल कारीगर भी होते थे, जो भव्य भवनों के निर्माण, मंदिरों और पिरामिडों के निर्माण कार्य भी किया करते थे। कभी कभी देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए इन युद्ध बंदियों की बलि भी चढ़ाई जाती थी।
माया सभ्यता में व्यवसाय
खेतों में कार्य करने के अलावा बुनाई भी माया वासियों का एक प्रमुख व्यवसाय था। पुरूष एवं महिलाओं दोनों के द्वारा यह कार्य किया जाता था। विनिमय एवं व्यापार भी नियमित रूप से होता था। माया वासियों के द्वारा किए जाने वाले अन्य व्यवसाय थे, लौकी, मीठा कहवा, फलियाँ, कुम्हड़ा, मक्का, इत्र का व्यापार।
पंचांग, चित्रकला और गणित आदि विषयों का ज्ञान
ऐसा प्रतीत होता है कि माया वासियों को पंचांग, चित्रकला, गणित, खगोलशास्त्र आदि विषयों का भी ज्ञान प्राप्त था। उनकी लिपि संभवतः नक्काशीदार लिपि थी। पंचांग और चित्रलिपि माया सभ्यता की प्रमुख उपलब्धियां हैं।
माया वासी लकड़ी और पाषाण जैसी वस्तुओं का प्रयोग अपनी चित्रलिपि के लिए किया करते थे। माया सभ्यता के पास से तीन तरह के कैलेंडर प्राप्त हुए हैं। पहला कैलेंडर 'हॉब', जिसमें वर्ष 18 महीनों में विभाजित था। दूसरा कैलेंडर 'जोलकिन' था, जिसमें 260 दिन हुआ करते थे। तीसरे कैलेंडर में लंबी अवधि की गणना की जाती थी। चित्रित लिपि के अभिलेखों से भी कैलेंडर होने की पुष्टि होती है।
माया सभ्यता का पतन
ऐसा प्रतीत होता है कि 9वीं शताब्दी में माया सभ्यता में इमारतें बननी बंद हो गई थीं, जोकि उनके पतन का प्रतीक है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि माया सभ्यता के पतन का कारण मलेरिया या पिले बुखार जैसी बीमारी रही होगी। जबकि कुछ विद्वानों का मानना है कि माया सभ्यता का पतन शायद भूकंप जैसी किसी प्राकृतिक आपदा के कारण हुआ होगा। कुछ का मत है कि सूखे के कारण इस सभ्यता का विनाश हुआ होगा। जबकि कुछ विद्वान माया सभ्यता के पतन का कारण कृषक विद्रोह को भी मानते हैं।
ऐसा भी प्रतीत होता है कि शायद माया सभ्यता की जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ने लगा होगा। हालांकि माया सभ्यता से प्राप्त हुए कंकालों को देखने से ज्ञात होता है कि उनकी मृत्यु संभवतः किसी बीमारी के कारण ही हुई होगी।
ऐसा माना जाता है कि जनसंख्या का दबाव बढ़ने के कारण माया वासियों द्वारा खेतों को बार बार जोता जाता रहा होगा। भूमि के विस्तार के लिए खेतों और जंगलों को भी बड़े स्तर पर काटा गया होगा। यह पारिस्थितिकी परिवर्तन संभवतः प्राकृतिक आपदा में परिवर्तित हुआ होगा और शायद इसी कारण से माया सभ्यता का विनाश हो गया होगा।
हालांकि माया सभ्यता के पतन का एक कारण कृषक विद्रोह को भी माना जाता है। 'बोनामपाक' से प्राप्त भित्तिचित्रों में कृषक विद्रोहियों को बंदियों के रूप में चित्रित किया गया है। हालांकि विद्वानों में इस चित्र को लेकर मतभेद हैं। कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि यह चित्र कुलीनों का भी हो सकता है। हालांकि कुलीनों की संख्या इतनी नहीं थी कि उनके खत्म हो जाने से सम्पूर्ण माया सभ्यता का पतन हो जाए।
माया सभ्यता का पतन एक जटिल प्रक्रिया है। पश्चिम के व्यापारिक मार्गों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए विभिन्न माया बस्तियों में युद्ध हुआ करते थे। परंतु आंतरिक विद्रोहों से भी इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि गरीब और किसान वर्ग ने अपने ऊपर उच्च वर्ग द्वारा होने वाले शोषण के विरोध के भी प्रयास किए होंगे। हालांकि माया सभ्यता की विभिन्न बस्तियों के पतन के अलग अलग कारण भी हो सकते हैं।
स्त्रोत : https://www.wikipedia.org/
M.A. History IGNOU Books
@लेखक : अँकुर सक्सेना
[Ankur Saxena]

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